Engine क्या है ?और इसके प्रकार

इंजन (Engine) –

एक ऐसी मशीन जो फ्यूल की कैमीकल एनर्जी (हीट एनर्जी) को मैकेनिकल कार्य (Mechanical Work) में परिवर्तित करें, उसे इंजन कहते हैं। यह एनर्जी गाड़ी (ऑटोमोबाइल) को चलाने में उपयोग की जाती है। इसे गाड़ी का पावर प्लांट या पावर यूनिट भी कहा जाता है क्योंकि गाड़ी चलाने के लिए इसके अंदर ही ताकत पैदा होती है।

इंजन के प्रकार (Types of Engines) –

इंजन के सिलिंडर में ईधन (Fuel) के दहन (Combustion) के आधार पर इंजन दो प्रकार के होते हैं।

types of engine

एक्सटर्नल कम्बस्शन इंजन (External Combustion Engine) –

ऐसे इंजन जिनमें ईंधन (Fuel) प्राय: इंजन के बाहर जलता है उसे एक्सटर्नल कम्बरशन इंजन कहते हैं जैसे-स्टीम इंजन

इन्टर्नल कम्बस्शन इंजन (Internal Combustion Engine) –

इंटरर्नल कम्बस्शन इंजन प्रायः वे इंजन होते हैं जिनके अन्दर ईंधन (पैट्रोल या डीजल) प्राय: कम्बस्शन चैम्बर में ही जलता है।

इन्टर्नल कम्बस्शन इंजन का आविष्कार 1876 में Mr. Atto ने किया जबकि उन्होंने गैस और हवा को कम्प्रेस (Compress) किया और फिर उसको जलाया गैस के जलने से जो शक्ति प्राप्त हुई उसे मैकेनिकल कार्य (Mechanical Work) में प्रयोग किया गया। इस सिद्धांत पर पैट्रोल इंजन कार्य करते हैं और इस साईकिल को ऑटो साईकिल कहते हैं।

डीजल इंजन, डीजल साईकिल पर कार्य करते हैं जिसका आविष्कार जर्मन इंजीनियर सर रुडोल्फ डीजल ने 1897 ई. में किया। उनके नाम पर ही इसे आज तक डीजल इंजन कहते हैं। इसमें केवल हवा को ही सिलिंडर के अंदर कम्प्रैस किया जाता है और डीजल को इंजेक्ट करके उससे शक्ति प्राप्त की जाती है।

इंजन के मुख्य भाग (Main Parts of Engine) –

इंजन के मुख्य भाग निम्न होते हैं

  1. सिलिंडर एण्ड सिलिंडर ब्लाक 2. पिस्टन एण्ड कनैक्टिंग राड 3. कैम शॉफ्ट एण्ड क्रैंक शाफ्ट 4. वाल्व एण्ड वाल्व मैकेनिज्म

इंजन का वर्गीकरण (Classification of Engine) –

इन्टर्नल कम्बस्शन इंजन का वर्गीकरण निम्न आवश्यकताओं या सिस्टम के अनुसार किया जाता है।

  1. इंजन किस काम के लिए प्रयोग में लाया जाता है ?
  2. इंजन में कौन-सा फ्यूल प्रयोग किया जा रहा है ?
  3. इंजन में किस प्रकार का कूलिंग सिस्टम लगा हुआ है?
  4. इंजन में वॉल्व किस ढंग से फिट किया गया है ?
  5. इंजन में सिलिंडर किस प्रकार से फिट किये हुए

1. इंजन किस काम के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है – वास्तव में इंजन एक जैसे ही बने रहते हैं लेकिन कई मशीनों में इंजन से इस समय पूरी पावर लेने की आवश्यकता होती है जबकि कुछ मशीनों में कभी कम पावर की और कभी ज्यादा।

(क) इंजनों को प्रयोग के आधार पर उसके चलने की स्पीड रखी जाती है इस प्रकार इंजनों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है (i) वेरीएबल स्पीड् इंजन, (ii) कॉसटेंट स्पीड इंजन।

(i) वेरीएबल स्पीड इंजन (Variable Speed Engine) – इसे आटोमोटिव इंजन भी कहते हैं इनकी पावर कॉन्सटेंट स्पीड इंजन से अधिक होती है क्योंकि किसी गाड़ी के इंजन को एक स्पीड पर नही चलाते हैं, एक्सीलेटर से उनकी स्पीड चलाते समय घटाते-बढ़ाते रहते हैं जैसे-मोटर साईकिल, कार, बस आदि में ये इंजन लगाये जाते हैं।

(ii) कॉन्सटेंट स्पीड इंजन (Constant Speed Engine) – इस श्रेणी में वे इंजन आते हैं जिसमें पूरी पावर चक्करों में पूरे समय के लिए ली जाती है। ऐसे इंजन बिजली के जनरेटर सैट आदि मशीनों में प्रयोग किये जाते हैं। क्योंकि उन्हें जनरेटर को पूरी स्पीड में पूरी शक्ति के साथ लम्बे समय तक चलाना होता है और यह इंजन लम्बे समय तक पूरी स्पीड में पूरी शक्ति के साथ चलाये जाते हैं। इसलिए इनकी हॉर्स पावर लगभग 10% वेरीएबल स्पीड इंजन से कम रखी जाती है। वैसे देखने में और बनावट में यह दोनों इंजन एक जैसे ही बने रहते हैं, फर्क सिर्फ फ्यूल डिलीवरी का ही होता है। विद्युत उत्पादन (जेनरेटर, पावर स्टेशन) में इनके चक्कर प्रति मिनट (RPM) कॉन्सटेंट (लगभग 3000) रखे जाते हैं।

2. इंजनों में विभिन्न प्रकार के फ्यूल ईंधन उपयोग में लाये जाते हैं जैसे-पैट्रोल, LPG, CNG, डीजल, ऑटो गैस आदि। आजकल तो इन ईंधनों के अलावा बायो डीजल पर भी गाड़ियाँ चलाई जा रही है।

3. कूलिग सिस्टभ – इंजन का वर्गीकरण कूलिंग सिस्टम के अनुसार दो प्रकार से किया जाता है। एयर कूलिंग सिस्टम और वाटर कूलिंग सिस्टम।

(i) एयर कूल्ड इंजन (Air Cooled Engine) – एयर कूल्ड इंजन में हवा सिलिंडर ब्लॉक के आगे चलने से टकराती हे या ब्लोवर लगाकर हवा को सिलिंडर ब्लॉक व हैड के इर्द-गिर्द घुमाया जाता है ताकि वह इनकी गर्मी को साथ लेकर बाहर निकल जाये। एयर कूल्ड इंजन ज्यादातर छोटी गाड़ियों में जैसे; मोटर साईकिल, स्कूटर आदि में काफी प्रचलित है।

(ii) वाटर कूल्ड इंजन (Water Cooled Engine) – वाटर कूल्ड इंजनों में सिलिंडर और हेड के बाहर वाटर जैकिट बने रहते हैं। जिनसे पानी को इनके इर्द-गिर्द घुमाकर इनका तापमान कम रखा जाता है।

4. इंजन में वाल्व की फिटिंग जैसे-ओवरहैड मैकेनिज्म या साइड वाल्व मैकेनिज्म से है।

5. इंजन में सिलिंडर; इनलाइन, रेडियल या अपोज्ड लगे हैं यह इंजन की दक्षता, स्पेस के आधार पर तय किया जाता है।

इंजन संबंधी तकनीकी परिभाषाएँ (Technical Definitions Related to Engine) –

  1. बोर (Bore) – सिलिण्डर के आंतरिक व्यास (Internal Diameter) को बोर कहते हैं।
  2. बी.डी.सी. (B.D.C.) – सिलिण्डर में पिस्टन की गति के निम्नतम् बिंदु को बाटम डेड सेन्टर (BDC) कहते हैं।
  3. टी.डी.सी. (T.D.C.) – सिलिण्डर में पिस्टन की गति के उच्चतम् बिंदु को टाप डेड सेन्टर (TDC) कहते हैं
  4. स्ट्रोक (Stroke) – पिस्टन द्वारा सिलिण्डर के अंदर टी.डी.सी. से बी.डी.सी. अथवा बी.डी.सी. से टी.डी.सी. तक चली गयी दूरी स्ट्रोक कहलाती है।
  5. स्ट्रोक लम्बाई (Stroke Length) – पिस्टन द्वारा बी.डी.सी. से टी.डी.सी. तक चली गयी रेखीय दूरी. स्ट्रोक लम्बाई कहलाती है इसे मि.मी. में दर्शाते हैं।
  6. सिलिण्डर आयतन (Cylinder Volume) – पिस्टन द्वारा टी.डी.सी. से बी.डी.सी. तक हटाया गया मिश्रण का आयतन, सिलिण्डर आयतन कहलाता है। इसे Vs से दर्शाते हैं। यदि किसी सिलिण्डर बोर D हो व स्ट्रोक लम्बाई L हो तो Vs = pi/4 * D 2 L सिलिण्डर आयतन (पिस्टन डिसप्लेसमेंट) (Cubic unit) सिलिंडर आयतन मारुती कार में 800 CC रखा जाता है।

कम्प्रैशन इग्नीशन डीजल इंजन(Compression Ignition Engine) –

फोर-स्ट्रोक डीजल इंजन (Four Stroke Diesel Engine) (Compression Ignition Engine) –

फोर स्ट्रोक डीजल इंजन में सक्सन, कम्प्रैशन, पावर तथा एग्जॉस्ट स्ट्रोक होते हैं यह डीजल साइकिल पर कार्य करता है। पावर स्ट्रोक के अंतर्गत कॉन्सटेंट प्रैशर (Constant Pressure) पर पावर उत्पन्न होती है। इसे सेल्फ इग्नीशन ईजन भी कहती हैं क्योकि इसमें स्पार्क आदि की आवश्यकता नही हाती, हवा के उच्च कम्प्रैशन से हाई टेम्परेचर उत्पन्न हो जाता है और इन्जैक्टर द्वारा डीजल का स्प्रे होते हैं अपने आप आग लग जाती है। क्योंकि आग हवा के ज्यादा कम्प्रेस होने से ही लगती है। इसे कम्प्रेशन इग्नीशन इंजन कहते हैं।

फोर-स्ट्रोक डीजल इंजन के काम करने का ढंग (Working of Four-Stroke Diesel Engine) –

इसमें चार स्ट्रोक होते हैं।

four stroke diesel engine

सक्शन स्ट्रोक (Suction Stroke) –

इस स्ट्रोक के आरम्भ में ही इनलेट वाल्व खुल जाता है और पिस्टन टी.डी.सी. से बी.डी.सी. (नीचे) की ओर चलता है पिस्टन के चलने से सिलिंडर के अंदर निर्वात (Vaccum) पैदा होता है और इनलेट मैनीफोल्ड से केवल हवा एयर फिल्टर से होती हुई पिस्टन के ऊपर सिलिण्डर के अंदर भर जाती है तब तक पिस्टन बी.डी.सी. पर पहुँच जाता है और इनलेट वाल्व बंद हो जाता है। क्रैक शॉफ्ट का आधा चक्कर (Halī Revolution या 180%) व कम शॉफ्ट का चौथाई चक्कर (900) पूरा हो जाता है।

कम्प्रेशन स्ट्रोक (Compression Stroke) –

जब पिस्टन बीडीसी से टीडीसी. की तरफ चलना शुरू होता है उस समय इनलेट वॉल्व बन्द हो जाता है और पिस्टन के ऊपर जाने पर सिलिंडर में आयी हवा कम्प्रेस होनी शुरू होती है। जब पिस्टन टी.डी.सी. पर पहुँचता है उस समय हवा के कम्प्रेस होने की वजह से हवा का तापमान लगभग 350°C से 550°C सैल्सियस तक पहुँच जाता है। क्रैंक शॉफ्ट का एक चक्कर या 360° और कैम शॉफ्ट का आधा चक्कर या 180° पूरा हो जाता है।

पावर स्ट्रोक (Power Stroke) –

दोनों वॉल्व बंद रहते हैं और प्रायः हवा का तापमान लगभग 350°C से 550°C तक होता है और इन्जेक्टर द्वारा डीजल और कम्प्रेशन स्ट्रोक पूरा हो जाता है। स्प्रे करते ही उसको आग लग जाती है। आग लगने से प्रेशर और अधिक बढ़ जाता है। दोनों वॉल्व बंद होने के कारण पिस्टन पर जली हुई गैसों का प्रैशर पहुँचता है और पिस्टन जर्क के साथ नीचे तरफ चलता है और पिस्टन को मिली यह पावर कनैक्टिंग 2 राड, व क्रैंक शाफ्ट से होकर फ्लाई व्हील तक पहुँचती है और जली हुई गैस सिलिण्डर में भर जाती है। क्रैंक शॉफ्ट का 1 चक्कर व कैम शॉफ्ट का 3/4 चक्कर पूरा हो जाता है।

एग्जॉस्ट स्ट्रोक (Exhaust Stroke) –

एग्जॉस्ट वॉल्व पिस्टन के बी.डी.सी. पर पहुँचने से थोड़ा पहले पावर -स्ट्रोक के अंत में ही खुल जाता है जिससे एग्जॉस्ट गैसों का दबाव पिस्टन पर कम हो जाता है और पिस्टन जब B.D.C. से T.D.C. की तरफ चलता है तो यह सब एग्जॉस्ट गैसों को एग्जॉस्ट बॉल्व द्वारा बाहर निकाल देता है। सिलिंडर खाली हो जाता है। क्रैंक शॉफ्ट के दो चक्कर व कैम शॉफ्ट का एक चक्कर पूरे हो जाते हैं।

वाल्व टाइमिंग डायाग्राम (Valve Timing Diagram) –

क्रैंक शॉफ्ट के रोटेशन के साथ वाल्व की पॉजीशन को बताता है कि वाल्व किस अवस्था में है खुला है या बंद है।

  1. वाल्व लीड – वाल्व का टी.डी.सी./बी.डी.सी. पर वाल्व टाइमिंग से पहला खुलना (ओपन होना), वाल्व लीड कहलाता है। 4-स्ट्रोक डीजल इंजन में इनलैट वाल्व टी.डी.सी. पर सक्शन स्ट्रोक में 22° पहले खुल जाता है अतः 22° लीड है।
  2. वाल्व लैग – वाल्व का टी.डी.सी./बी.डी.सी. पर वाल्व टाइमिंग के बाद खुलना, वाल्ब लैंग कहलाता बाद बंद होता है। अतः 56° लैग है।
  3. वाल्व ओवर लैप – दोनों वाल्वों का एक साथ खुले रहना या बंद रहना वाल्व ओवरलैप कहलाता है। इनलेट व एग्जास्ट वाल्व डिग्री के लिए टी.डी.सी. पर एक साथ क्शन व एग्जास्ट खुलते हैं व कम्प्रेशन व पावर में एक साथ बंद रहते हैं।

टू-स्ट्रोक साईकिल डीजल इंजन (Two Stroke Cycle Diesel Engine) –

टू-स्ट्रोक डीजल इंजन में इनटेक, कम्प्रेशन, पावर एग्जॉस्ट क्रियाएँ पिस्टन के टू-स्ट्रोक के अन्दर ही पूरे किये जाते हैं अर्थात् हर दूसरी स्ट्रोक पावर स्ट्रोक होती passage है। क्रैंक शॉफ्ट का एक चक्कर में ही इंजन का कार्यकारी स्ट्रोक (Working Stroke) पूरा हो जाता है। इसमें सिलिंडर के अंदर ही पोर्ट बने होते हैं जैसे इनलेट, एग्जॉस्ट, बाईपास पोर्ट आदि और वॉल्व नहीं होते हैं।

two stroke diesel engine

टू स्ट्रोक डीजल इंजन की कार्य विधि (Working of Two Stroke Diesel Engine) –

इंजनों की कार्यविधि निम्न दो स्ट्रोको में पूरी होती है –

अपवार्ड स्ट्रोक (Upward Stroke) –

पिस्टन बी.डी.सी. से टी.डी.सी. का तरफ चलता है और पिस्टन ऊपर आई हुई एयर को दबाता है जिससे कम्प्रेशन बनता है और मिश्रण का ताप बढ़ जाता है। साथ ही साथ पिस्टन के नीचे की तरफ इनलेट पोर्ट खुल जाता है और वायुमण्डलीय दाब पर हवा क्रॅक केस में भर जाती है अर्थात् पिस्टर्न के ऊपर कम्प्रेशन तथा नीचे सक्शन होता है।

डाउनवार्ड स्ट्रोक (Downward Stroke) –

पिछले स्ट्रोक में कम्प्रैशन के अंत में इंजेक्टर द्वारा डीजल का इंजैक्शन किया जाता है जिससे कि दबी हवा के अधिक तापमान के कारण डीजल के स्प्रे होने पर स्वतः आग लग जाती है “गैसे जलने पर फैलती है” इस सिद्धांत पर पिस्टन पर प्रेशर के रूप में जर्क लगता है जोकि कनेक्टिग राड द्वारा क्रैंक शॉफ्ट पर पावर के रूप में पहुंचता है और एग्जास्ट पोर्ट खुल जाता है और जली हुई गैसे सिलिण्डर बाहर एग्जास्ट पोर्ट से बाहर निकलती है साथ ही साथ पिस्टन के नीचे क्रैंक केस में हवा को दबाता है जिससे हवा बाईपास पोर्ट से सिलिण्डर में पिस्टन के ऊपर पहुँचनी आरम्भ हो जाती है।

आजकल के टू-स्ट्रोक डीजल इंजनों में इनलैट वॉल्व लगाये जाते हैं और हवा बजाये क्रॅक केस द्वारा इनलैट पोर्ट से दाखिल करने के सीधा ब्लोदर या सुपरचार्जर द्वारा दाखिल की जाती है जिससे हवा काफी मात्रा में भर जाती है और इंजन की क्षमता काफी बढ़ जाती है। जनरल मोटर्स (G.M.) के टू-स्ट्रोक इंजन काफी प्रचलित हैं। यह हवा को प्रेशर के साथ सिलिंडर के अंदर पहुँचाता है जिससे इंजन की वॉल्यूमैट्रिक इफीसिसी (Volumetric Efficiency) बढ़ जाती है जिससे इंजन जल्दी स्टार्ट हो जाता है।

इस तरह के टू-स्ट्रोक इंजन को टू-स्ट्रोक सुपरचार्जर इंजन कहते हैं जबकि पहले इंजन में हवा क्रैंक केस के द्वारा इनटेक पोर्ट से सिलिंडर में जाती थी। हम उसे क्रैंक केस इनटेक सिस्टम कहते हैं।

टू-स्ट्रोक इंजन की कुछ विशेषताएँ (Some Features of Two Stroke Engine)

  1. टू-स्ट्रोक साइकिल इंजन में चार-स्ट्रोक के मुकाबले दुगुनी पावर स्ट्रोक होती हैं इससे पता चलता है कि टू-स्ट्रोक अधिक पावर उत्पन्न (Develop) करता है।
  2. टू-स्ट्रोक इंजन में जली हुई गैसें पूरी तरह से निकल नहीं पाती और न ही ईंधन पूरी तरह से जल पाता है जिससे ईंधन की लागत कुछ ज्यादा होती है।
  3. हर बार जब पिस्टन टी.डी.सी. से बी.डी.सी. की तरफ आता है तो वह पावर स्ट्रोक होती है जिसकी वजह से क्रैंक शॉफ्ट पर टर्निंग प्रभाव समान रहता है।
  4. टू-स्ट्रोक इंजन में हवा को ज्यादा मात्रा में भेजने के लिए ब्लोवर या सुपरचार्जर का प्रयोग किया जाता है जिसमें कुछ शक्ति इसको चलाने में खर्च हो जाती है।
  5. कम पुर्जे होने की वजह से फोर-स्ट्रोक इंजन की तुलना में टू-स्ट्रोक इंजन कम भारी होते हैं।

सुपरचार्जर के लाभ (Advantages of Super Charger) –

  1. हवा को काफी मात्रा में सिलिंडर में भेज कर हमें हायर थर्मल ऐफिशियेंसी प्राप्त होती है।
  2. सुपरचार्जर लगाने से एक इंजन मे 20-30 प्रतिशत अधिक पावर मिल पाती है।
  3. सुपरचार्जर लगाने से फ्यूल कंजम्प्शन 10 प्रतिशत कम हो जाती है।
  4. सुपरचार्जर लगे इंजन का एग्जॉस्ट साफ होता है।

सुपरचार्जर की हानियाँ (Disadvantages of Super Charger) –

  1. सुपरचार्जर वाले इंजन में ज्यादा हवा भेजने से उसके अन्दर प्रेशर काफी बढ़ जाता है और उसको सहन करने के लिए महँगी धातु लगानी पड़ती है। इसके इंजन महँगे आते हैं।
  2. ज्यादा प्रेशर को सहन करने के लिए इंजन के पुर्जे मजबूत बनाने पड़ते हैं जिससे साधारण इंजन से ऐसे इंजन का वजन बढ़ जाता है।
  3. अगर इंजन में टर्बो चार्जर न लगा हो तो इंजन की कुछ शक्ति सुपरचार्जर चलाने में लग जाती है।
  4. ऐसे इंजनों में प्रैशर के साथ तापमान काफी बढ़ जाता है जिसको कंट्रोल करने के लिए बड़े साइज के रेडियेटर की आवश्यकता पड़ती है।

फोर-स्ट्रोक स्पार्क इग्नीशन पैट्रोल इंजन (Four- Stroke Spark Ignition Petrol Engine) –

फोर-स्ट्रोक स्पार्क इग्नीशन इंजन ऑटो साइकिल के सिद्धांत पर काम करता है सभी कारों में और लाइट कमर्शियल वेन आदि में लगाया जाता है। इसमें क्रैंक शॉफ्ट के दो चक्करों में इंजन का एक वर्किंग साईकिल पूरा होता है इसमें हवा व पैट्रोल के मिश्रण को जलाने के लिए स्पार्क प्लग लगाया जाता है।

Four stroke cycle engine petrol
  1. सक्शन या इंडक्शन स्ट्रोक (Suction or Induction Stroke)
  2. कम्प्रेशन स्ट्रोक (Compression Stroke)
  3. पॉवर या फायरिंग स्ट्रोक (Power or Firing Stroke)
  4. एग्जॉस्ट स्ट्रोक (Exhaust Stroke)
  1. सक्शन या इन्डक्शन स्ट्रोक (Suction or Induction Stroke) – इसमें इनलैट वॉल्व स्ट्रोक के आरंभ में ही खुल जाता है और पिस्टन टी.डी.सी. से बी.डी.सी. की तरफ (नीचे) चलता है। इस पिस्टन के ऊपर के भाग में वैक्यूम बन जाता है जिससे पेट्रोल और हवा का मिक्सचर कार्रर्बोरेटर से खिंच कर इस भाग में भर जाता है। पेट्रोल और हवा का मिश्रण सिलिंडर में कितनी मात्रा में भरा जाये, यह पिस्टन की गति व थ्रॉटल के खुला होने पर निर्भर करता है। आजकल के इंजन में इनलैट वॉल्व (Inlet Valve) लगभग 10° टी.डी.सी. से पहले खुल जाता है ताकि मिक्सचर जिसको चार्ज (Charge) भी कहते हैं पूरी तरह सिलिंडर में भर जाये। इसी तरह इनलेट वॉल्व को बॉटम डेड सेन्टर के पहुँचने के बाद भी खुला रखते हैं जोकि लगभग 35° तक जो गैस काफी तेज स्पीड (100 to 300 फीट सेकेंड) से सिलिंडर में भर रही होती है, सिलिंडर को पूरी तरह भर लें।
  2. कम्प्रेशन स्ट्रोक (Compression Stroke) – इसमें दोनों वॉल्व Inlet Valve and Exhaust Valve बन्द रहते हैं। पिस्टन फ्लाई व्हील के चलने से ऊपर की तरफ चलना शुरू करता है तो चार्ज कम्प्रेस होना शुरू हो जाता है। अगर चार्ज को प्रेस करें तो प्रैशर तथा तापमान भी बढ़ता है। प्रेशर को बढ़ना कम्प्रेशन अनुपात थ्रॉटल ओपनिंग और इंजन की गति पर निर्भर करता है। इसका प्रेशर थ्रॉटल के पूरा खुला रखने पर 6.3 से 8.44 kg/cm2 (90 से 120 पौंड प्रति वर्ग इंच) पहुँच जाता है जब वह पूरा टॉप डेड सेन्टर पर पहुँचता है।
  3. पॉवर या फायरिंग स्ट्रोक (Power or Firing Stroke) – इसमें दोनों वॉल्व Inlet Valve and Exhaust Valve बन्द रहते हैं। पिस्टन के कम्प्रेशन स्ट्रोक में टी.डी.सी. पर पहुँचने से पहले चार्ज को स्पार्क प्लग की सहायता से आग लगाई जाती है और इस आग लगने के कारण गैसें फैलती हैं। सिलिंडर के अन्दर पिस्टन ही एक चलने वाला भाग है। इसलिए पिस्टन के सिरे के ऊपर काफी दबाव पड़ता है, जिससे वह नीचे की तरफ जोर से चलना शुरू करता है और क्रैंक शॉफ्ट घूमनी शुरू हो जाती है। इसे हम पॉवर स्ट्रोक कहते हैं। पैट्रोल इंजन के अन्दर खुली थ्रॉटल पर पॉवर स्ट्रोक में तापमान लगभग 2000° सेंट्रीग्रेड और दबाव 35 kg/cm (500 पौंड प्रतिवर्ग इंच) तक पहुँच जाता है यह दबाव धीरे-धीरे घटता जाता है जबकि पिस्टन नीचे (बी.डी.सी.) की तरफ पहुँचता है। इस तरह जली हुई गैस को काफी स्थान मिल जाता है।
  4. एग्जॉस्ट स्ट्रोक (Exhaust Stroke) – इसमें एग्जॉस्ट वॉल्व खुल जाता है और इनलेट वॉल्व बन्द रहता है। पिस्टन बी.डी.सी. से टी.डी.सी. ऊपर की तरफ चलना शुरू करता है और जली हुई गैसों को एग्जॉस्ट वॉल्व द्वारा बाहर धकेल देता है। एग्जॉस्ट वॉल्व साधारणत: 35° बी.डी.सी. से पहले ही खुल जाता है ताकि पिस्टन के ऊपर सिलिंडर के अन्दर वापसी दबाव कम हो जाये। फोर-स्ट्रोक साईकिल इंजन में पिस्टन के चार बार ऊपर नीचे जाने के पश्चात् सिर्फ एक पॉवर-स्ट्रोक होता है बाकी तीन स्ट्रोक को हम आइडल स्ट्रोक कहते हैं।

टू स्ट्रोक स्पार्क इग्नीशन पैट्रोल इंजन (Two-Stroke Spark Ignition Engine) –

इसमें Complete Cycle अर्थात् Suction Compression Power और Exhaust सभी दो स्ट्रोक में ही पूरे हो जाते हैं। इसका अभिप्राय यह भी हुआ कि Two-stroke Engine में उसी Size के Four Stroke Engine के मुकाबले दो गुनी पॉवर स्ट्रोक अधिक होती है। Dugad Clark ने 1880 में इस इंजन का आविष्कार किया। इसलिए टू-स्ट्रोक इंजन को कई बार (Clark cycle) क्लार्क साईकल इंजन भी कहते हैं। इसमें सिलिंडर में पोर्ट बने रहते हैं।

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टू स्ट्रोक पैट्रोल इंजन की कार्यविधि (Working of Two Stroke Petrol Engine) –

Upward Stroke – जब पिस्टन बी.डी.सी. से टी.डी.सी. की तरफ चलता है तो पिस्टन द्वारा एग्जॉस्ट पोर्ट बंद होता है और पिस्टन के ऊपर क्रम्प्रेशन होता है और नीचे पिस्टन की मूवमेंट से इनलैट पोर्ट खुल जाता है जिससे फ्रैश चार्ज (हवा + पैट्रोल) क्रैंक केस में आना शुरू हो जाता है। टी.डी.सी. पर पहुँच जाता है। अपवार्ड स्ट्रोक पूरा हो जाता है।

Downward Stroke – अपवार्ड स्ट्रोक में पिस्टन के टी.डी.सी. पर पहुंचते हैं कम्प्रेशन से तापमान बढ़ता है और स्पार्क होने से पावर डवलप हो जाती है जिससे पिस्टन के ऊपर पावर स्ट्रोक होता है और पिस्टन की डाऊन वार्ड मूवमेंट (टी.डी.सी. से बी.डी.सी.) से इनलैट पोर्ट बंद होता है, एग्जॉस्ट पोर्ट खुल जाता है जिससे जली गैसे वातावरण में निकल जाती है साथ ही साथ क्रैंककेस में आये हवा पैट्रोल मिश्रण वाई-पास पोर्ट से सिलिंडर के कम्बस्शन चैम्बर में पहुँच जाता है।

टू-स्ट्रोक इंजन (Two-stroke Engine) के पिस्टन डोम टाइप के होते हैं जिससे कि Inlet port से आने वाली गैसें पिस्टन के ऊपर के सिरे से टकराकर ऊपर की तरफ जायें और Exhaust gases piston के Head में स्लोप के कारण बाहर निकल जायें। यदि फ्लैट डेड (Flat Head) के पिस्टन प्रयोग करें तो Inlet हमें सीधी इनलेट पोर्ट से आती हुई एग्जॉस्ट पोर्ट से बाहर निकल जायेंगी।

पहले चार्ज क्रैंक में थोड़ी सी कम्प्रेस होती है और फिर इनलेट पोर्ट द्वारा सिलिंडर में पहुँचती है। क्योंकि चार्ज पहले क्रॅक केस में जाता है इसलिए क्रैंक केस के अन्दर ल्युब्रिकेटिंग ऑयल (Lubricating Oil) क्रैंक शॉफ्ट कनेक्टिंग रॉड, गजन पिन इत्यादि ल्युब्रिकेंट करने के लिए रखना उचित नहीं है। अगर क्रैंक केस के अन्दर इंजन ऑयल डालें तो वह चार्ज के साथ सिलिंडर में पहुँच जायेगा और क्रैंक में नहीं रहेगा। लेकिन हमें ऊपर लिखे उन सब भागों को ल्युब्रीकेंट करना जरूरी है इसलिए पैट्रोल के अन्दर ही कुछ मात्रा इंजन ऑयल की मिला देते हैं ताकि चार्ज के अन्दर जो मात्रा इंजन ऑयल की जाये, इन सबको ल्युब्रीकेंट करें।

टू-स्ट्रोक इंजन उसी नाप के फोर-स्ट्रोक इंजन के मुकाबले में दुगुनी पॉवर स्ट्रोक्स होती है तो इसका अर्थ हुआ कि टू-स्ट्रोक इंजन दुगुनी पॉवर उत्पन्न करे, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। टू-स्ट्रोक इंजन उसी नाप के फोर-स्ट्रोक इंजन के मुकाबले 20 से 40% तक अधिक शक्ति देता है न कि दुगुनी।

निष्कर्ष (Conclusion) –

मैं आशा करता हूँ कि आपने मेरा यह आर्टिकल अच्छे से पढ़ा होगा और यह समझ लिया होगा कि  Engine क्या है ?और इसके प्रकार , फोर-स्ट्रोक डीजल इंजन , टू-स्ट्रोक साईकिल डीजल इंजन , सुपरचार्जर के लाभ हानियाँ , फोर-स्ट्रोक स्पार्क इग्नीशन पैट्रोल इंजन , टू स्ट्रोक स्पार्क इग्नीशन पैट्रोल इंजन

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