Marking | Pupose Of Marking | Marking Media | Types of Marking Media | Method of Marking In Workshop

मार्किंग (Marking )

जिस प्रकार घर बनाने से पहले नक्शा बनाकर प्लॉटों पर निशान लगाए जाते हैं तथा हैं उसी प्रकार कारखानों (workshop ) में भी जॉब तैयार करने से पहले ड्राइंग के अनुसार मार्किंग औजारों द्वारा लाइनें खींची जाती हैं जिसे मार्किंग कहते हैं। मार्किंग के द्वारा धातु की बचत होती है और जॉब सही आकार में बनती है। क्योंकि मार्किंग से यह ज्ञात हो जाता है कि किस भाग से कितनी धातु को काटना है और क्या-क्या ऑपरेशन करने हैं। जॉब पर मार्किंग करना आवश्यक होता है। यही मार्क की हुई रेखाएँ कारीगर का पथ-प्रदर्शन करती हैं। जॉब की ड्राइंग के अनुसार कार्य खंड पर केंद्र बिंदु, केंद्र रेखा, बाहरी रेखाएँ खींचने को ही मार्किंग कहते हैं। मार्किंग जितनी अधिक सही व साफ होगी, जॉब भी उतनी ही सही व सुंदर बनेगी तथा सुंदर मार्किंग से जॉब के खराब होने का भय कम होता है। इसलिए जॉब को शुद्ध बनाने में मार्किंग के द्वारा धातु को बर्बाद (Reject) होने से बचाया जा सकता है। अतः ड्राइंग के अनुसार जॉब पर आवश्यकतानुसार बिल्कुल वैसी की वैसी (हुबहु) शक्ल उतारना ही मार्किंग ( मार्किंग आउट) कहलाती है।

अच्छी और सही मार्किंग करने के लिए निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. मार्किंग प्रारंभ करने से पहले ब्लू प्रिंट या ड्राइंग को अच्छी तरह से पढ़कर समझ लेना चाहिए।
  2. जॉब और उसके मापक औजार की यथार्थता (Accuracy) के अनुसार उपयुक्त मार्किंग टूल का चुनाव करना चाहिए।
  3. ड्राइंग के प्रत्येक माप (Dimension) को बहुत सावधानी से पढ़ना चाहिए और उसके अनुसार मार्किंग टूल को सही तरीके से सैट करना चाहिए।
  4. बिंदु पंच (Dot Punch) से पक्का निशान लगाने से पहले एक बार फिर जाँच कर लेनी चाहिए कि मार्किंग ठीक और सही साइज एवं शक्ल की हुई है। यह भी निश्चित कर लेना चाहिए कि पंच द्वारा कहाँ-कहाँ निशान पक्के करने हैं।
  5. मार्किंग लाइन पर बिंदु पंच (Dot Punch) से बिंदु इस प्रकार लगाने चाहिए कि काम करते समय कारीगर को मार्किंग लाइन साफ-साफ दिखाई देती रहे। साथ-ही-साथ ये बिंदु ठीक लाइन पर और जहाँ तक संभव हो सके बराबर दूरी पर होने चाहिए।
  6. किसी सुराख के वृत्त (Circle) के लिए उसकी परिधि पर बराबर-बराबर दूरी पर समान गहराई के बिंदु, डॉट पंच से तथा बीच में ठीक उसके केंद्र पंच (Centre) Punch) द्वारा गहरा बिंदु लगाना चाहिए।

मार्किंग के उद्देश्य (Purposes of Marking) –

  1. जॉब बनाते समय मार्किंग रेखाएँ कारीगर के लिए गाइड लाइन का कार्य करती हैं जिससे कि वह जॉब को शीघ्र एवं सही साइज में बना सके।
  2. मार्किंग से समय की बचत होती है क्योंकि कारीगर को यह ज्ञान हो जाता है कि कटिंग, फाइलिंग या मशीनिंग द्वारा धातु की कितनी मात्रा काटनी है।
  3. मार्किंग करने के पश्चात् ऑपरेशन के समय जब को बार-बार मापने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  4. मार्किंग करने से कारीगर को यह ज्ञान हो जाता है कि जॉब को बनाने के लिए उसे पहले कौन-सी क्रिया करनी है।

मार्किंग मीडिया (Marking Media) –

जॉब पर जितनी अच्छी व सही मार्किंग होगी वह उतना ही अच्छा और सही बनाया जा सकता है। मार्किंग करने से पहले जॉब की सतह पर किसी उपयुक्त रंग या उसके समान किसी पदार्थ का लेप लगा दिया जाता है जिसे मार्किंग मीडिया (Marking Media) कहते हैं। मार्किंग मीडिया को जॉब की सतह पर लगाने से यह लाभ होता है कि जॉब की सतह पर रेखाएँ खींचते समय वे बिल्कुल साफ दिखाई देती हैं। साधारण ब्लैक बोर्ड चॉक, अभिन्यास डाई (Layout Die) तथा नीले थोथे के घोल को मार्किंग मीडिया के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मार्किंग मीडिया के प्रकार (Types of Marking Media) –

मार्किंग करने से पहले जॉब की सतह पर निम्नलिखित पदार्थ मार्किंग मीडिया के रूप में लगाए जा सकते हैं –

  1. साधारण ब्लैक बोर्ड चॉक (Ordinary Black Board Chalk) – इसका प्रयोग प्रायः ढलवाँ लोहे (Cast Iron) तथा इस्पात (Steel) की रुक्ष (Rough) सतहों के लिए किया जाता हैं ।
  2. तूतिया (Blue Vitroil) – यह पानी में नीला थोथा (Copper Sulphate) का घोल होता है जिसमें गंधक के अम्ल की भी 4-5 बूँदे मिलाई जाती हैं। इसे इस्पात की सतह पर लगाने पर सतह का रंग ताँबे के रंग जैसा हो जाता है। इसका प्रयोग करने से पहले जॉब की सतह को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। इसे परिष्कृत सतहों (Finished Surfaces) पर ही प्रयोग करना चाहिए।
  3. अभिन्यास डाई (Layout Dice) – यह एक प्रकार का स्याही के रंग जैसा द्रव पदार्थ होता है जिसे धातु की सतह पर ब्रुश से लगाया जाता है। यह जॉब की सतह पर आसानी से लग जाती है, जल्दी सूख जाती है और इसको आसानी से उतारा भी जा सकता है। जब इसको जॉब की सतह पर लगाया जाता है तो सतह नीले रंग की हो जाती है। इसका प्रयोग करने से पहले जॉब की सतह पर लगे ग्रीस आदि को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।
  4. श्वेत लेप (White Coating) – चॉक का पाउडर और थोड़ी-सी एल्कोहल को पानी में मिलाकर एक घोल बना लिया जाता है। एल्कोहल को मिलाने से जॉब की सतह पर जंग नहीं लगता और जल्दी सूख जाता है। इसका प्रयोग ब्रुश की सहायता से किया जाता है।

मार्किंग की विधियाँ (Methods of Marking) –

जॉब पर मार्किंग करने की कई विधियाँ होती हैं, जिनमें से प्रायः बनाया निम्नलिखित प्रयोग में लाई जाती हैं :

निर्देश रेखा विधि (Datum Line Method) –

यह दिया विधि उस समय प्रयोग में लाई जाती है जब किसी जॉब की दो हैं। निकटवर्ती भुजाएँ (Adjacent Sides) अच्छी तरह से फिनिश देता है की हुई और 90° के कोण पर बनी हों। इस विधि में पहले एक आधार रेखा, जिसे निर्देश रेखा कहते हैं, खींच ली जाती है। इसके पश्चात् इस किनारा डेटम (Datum Line) से दूसरी मार्किंग रेखाएँ खींची जाती हैं। यदि किसी धातु के टुकड़े से आयताकार जॉब बनानी है तो सबसे पहले उसकी दो निकटवर्ती भुजाओं को अच्छी तरह फिनिश करके 90° के कोण पर बना लिया जाता है। इसके पश्चात् इन दोनों फिनिश की हुई निकटवर्ती सतहों के संदर्भ में मार्किंग की जाती है।

केंद्र रेखा विधि (Centre Line Method) –

यह विधि वहाँ प्रयोग में लाई जाती है जहाँ मार्किंग उन टेढ़े-मेढ़े कार्य खंडों पर करनी हो जिनका कोई भी सिरा फिनिश किया हुआ न हो। ऐसे जॉब पर मार्किंग करने के लिए पहले अंदाज से सेंटर लाईन लगा ली जाती है और फिर इस केंद्र रेखा के संदर्भ में मार्किंग की अन्य रेखाएँ खींची जाती हैं।

टेंपलेट द्वारा मार्किंग करना (Marking by Template) –

इस प्रकार की मार्किंग वहाँ की जाती है जहाँ पर एक ही प्रकार की मार्किंग एक जैसे कार्य खंडों पर बहु-मात्रा में करनी हो। ऐसी मार्किंग करने के लिए जॉब के आकार के अनुसार पतली चादर (Sheet) से एक टेंपलेट बना ली जाती है और इस टेंपलेट को जॉब पर रखकर स्क्राइबर (Scriber) की सहायता से रेखाएँ लगाकर मार्किंग की जा सकती है।

मार्किंग के दौरान सावधनियाँ (Precautions While Doing Marking) –

  1. मार्किंग मीडिया का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जॉब की सतह पर मार्किंग मीडिया की अधिक मोटी सतह न जमने पाए।
  2. जॉब की सतह पर मार्किंग मीडिया का एक समान लेप होना चाहिए।
  3. तूतिया (Blue Vitroil) को प्रयोग करते समय हाथ से नहीं छूना चाहिए।
  4. मार्किंग मीडिया के सूख जाने के पश्चात् ही मार्किंग करनी चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion) –

मैं आशा करता हूँ कि आपने मेरा यह आर्टिकल अच्छे से पढ़ा होगा और यह समझ लिया होगा कि  मार्किंग, मार्किंग के उद्देश्य , मार्किंग मीडिया , मार्किंग मीडिया के प्रकार , मार्किंग की विधियाँ , मार्किंग के दौरान सावधनियाँ अगर आपको मेरा यह Article Helpful लगा हो तो इसे जरूरतमंद लोगों के साथ Share कीजिये तथा अगर इस Article में आपको कोई बात समझ न आयी हो तो आप Comment कर सकते हो।

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